tum to thahare paradesee saath kyaa nibhaaoge

Title:tum to thahare paradesee saath kyaa nibhaaoge Movie:Tum To Thahre Pardesi (Non-Film) Singer:Altaf Raja Music:Mohammed Shafi Niyazi Lyricist:Zaheer Alam

English Text
देवलिपि


तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे
सुबह पहली गाड़ी से घर को लौट जाओगे
सुबह पहली गाड़ी से ...

खिंचे खिंचे हुए रहते हो क्यूं खिंचे खिंचे हुए रहते हो ध्यान किसका है
ज़रा बताओ तो ये इम्तेहान किसका है
हमें भुला दो मगर ये तो याद ही होगा
नई सड़क पे पुराना मकान किसका है
जब तुम्हें अकेले में मेरी याद आएगी
आँसुओं की बारिश में तुम भी भीग जाओगे

ग़म की धूप में दिल की हसरतें न जल जाएं
तुझको ऐ तुझको देखने सितारे तो जिया मांगेंगे
अपने कांधे से दुपट्टा न सरकने देना
वरना बूढ़े भी जवानी की दुआ मांगेंगे
ईमान से
गेसुओं के साए में मुझको क़त्ल कर डालो शौक़ से मगर सोचो
इस शहर-ए-नामुराद की इज़्ज़त करेगा कौन
अरे हम भी चले गए तो मुहब्बत करेगा कौन
इस घर की देखभाल को वीरानियां तो हों
जाले हटा दिये तो हिफ़ाज़त करेगा कौन
मेरे बाद तुम किस पर ये बिजलियां गिराओगे

यूं तो ज़िंदगी अपनी मैकदे में गुज़री है
अश्क़ों में हुस्न-ओ-रंग समोता रहा हूँ मैं
आंचल किसी का थाम के रोता रहा हूँ मैं
निखरा है जा के अब कहीं चेहरा शऊर का
बहकी हुई बहार ने पीना सिखा दिया
पीता हूँ इस गरज़ से के जीना है चार दिन
मरने के इंतज़ार में पीना सीख लिया
इन नशीली आँखों से अरे कब हमें पिलाओगे

जब तुम से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र मिली थी
अब याद आ रहा है शायद वो जनवरी थी
तुम यूं मिलीं दुबारा फिर माह-ए-फ़रवरी में
जैसे कि हमसफ़र हो तुम राह-ए-ज़िंदगी में
कितना हसीं ज़माना आया था मार्च लेकर
राह-ए-वफ़ा पे थीं तुम वादों की torchलेकर
मांगा जो अहद-ए-उल्फ़त अप्रैल चल रहा था
दुनिया बदल रही थी मौसम बदल रहा था

लेकिन मई जब आई जलने लगा ज़माना
हर शख्स की ज़ुबां पर था बस यही फ़साना
दुनिया के डर से तुमने बदली थीं जब निगाहें
था जून का महीना लब पे थीं गर्म आहें
जुलाई में जो तुमने की बातचीत कुछ कम
थे आसमां पे बादल और मेरी आँखें पुरनम
माह-ए-अगस्त में जब बरसात हो रही थी
बस आँसुओं की बारिश दिन रात हो रही थी
कुछ याद आ रहा है वो माह था सितम्बर
भेजा था तुमने मुझको तर्क़-ए-वफ़ा का letter
तुम गैर हो रही थीं अक्टूबर आ गया था
दुनिया बदल चुकी थी मौसम बदल चुका था

जब आ गया नवम्बर ऐसी भी रात आई
मुझसे तुम्हें छुड़ाने सजकर बारात आई
वो क़ैफ़ था दिसम्बर जज़्बात मर चुके थे
मौसम था सर्द उसमें अरमां बिखर चुके थे
लेकिन ये क्या बताऊं अब हाल दूसरा है
अरे वो साल दूसरा था ये साल दूसरा है
क्या करोगे तुम आखिर कब्र पर मेरी आकर
थोड़ी देर रो लोगे और भूल जाओगे
तुम तो ठहरे परदेसी ...